डंडी या गोथा: भारतीय देसी खेल की 1अद्भुत (Amazing) दुनिया

परिचय:

नमस्ते दोस्तों, स्वागत है आपका हमारे इस ब्लॉग में जिसका शीर्षक है “डंडी या गोथा: भारतीय देसी खेल की 1अद्भुत (Amazing) दुनिया”। भारत में परंपरागत खेलों की एक लंबी श्रृंखला रही है।

बचपन में हम सभी ने गलियों और मैदानों में ऐसे कई खेल खेले हैं जिनका मजा कुछ अलग ही होता था। इन्हीं खेलों में से एक है डंडी या गोथा। यह खेल देखने में भले ही आसान लगे, लेकिन इसे खेलना उतना ही मजेदार और चुनौतीपूर्ण होता है।

डंडी या गोथा को लोग हॉकी की तरह खेले जाने वाला खेल भी कहते हैं। इसमें लकड़ी की डंडियों और एक छोटी सी गेंद जैसी चीज़ का इस्तेमाल होता है। गांव-देहातों में बच्चे, बड़े और बुजुर्ग भी इसे बड़े चाव से खेलते हैं।

इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि डंडी या गोथा क्या है, कैसे खेला जाता है, इसके नियम क्या हैं, इसके फायदे क्या हैं और क्यों यह खेल आज भी दिलों में बसता है।


डंडी या गोथा क्या है?

डंडी या गोथा एक देसी खेल है जो खासकर भारत के ग्रामीण इलाकों में प्रसिद्ध है। इसे आमतौर पर मिट्टी या कच्चे मैदान पर खेला जाता है। खेल में दो मुख्य चीजें होती हैं – एक डंडी और एक गोथा।

  • डंडी: यह लंबी लकड़ी की छड़ी होती है, बिल्कुल हॉकी स्टिक जैसी।

  • गोथा : यह छोटी लकड़ी या रबर की बनी गेंद होती है।

खिलाड़ी डंडी या गोथा को मारकर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने की कोशिश करते हैं। इसमें काफी तेजी और फुर्ती की जरूरत होती है।


खेल की उत्पत्ति

डंडी या गोथा का इतिहास कोई दस्तावेजों में तो नहीं लिखा गया, लेकिन कहा जाता है कि यह सदियों से भारतीय गांवों में खेला जाता रहा है। पहले यह मनोरंजन और शारीरिक व्यायाम के लिए खेला जाता था। खासकर किसानों के बच्चे इसे खेलकर अपनी चुस्ती और ताकत बढ़ाते थे।

कई बुजुर्ग बताते हैं कि पहले इस खेल को खेतों के किनारे या खुली जमीन पर खेला जाता था। धीरे-धीरे यह खेल गांव की शान बन गया और आज भी कई जगहों पर इसका आयोजन होता है।


डंडी या गोथा खेलने का मैदान

इस खेल को किसी भी समतल मैदान या खाली जगह पर खेला जा सकता है। मैदान का कोई तय आकार नहीं होता, लेकिन सामान्यत: यह करीब 30 से 50 फीट लंबा और 20 फीट चौड़ा होता है।

मैदान के दोनों सिरों पर गोल की जगह बनाई जाती है। ये गोल कुछ चिन्हों या पत्थरों से बनाए जाते हैं। खिलाड़ी अपनी टीम के गोल की रक्षा करते हैं और सामने वाली टीम के गोल में गोथा पहुंचाने की कोशिश करते हैं।


टीम और खिलाड़ी

डंडी या गोथा दो टीमों में खेला जाता है।

  • हर टीम में 5 से 7 खिलाड़ी होते हैं।

  • एक टीम आक्रमण करती है और दूसरी टीम रक्षा करती है।

  • सभी खिलाड़ियों के पास अपनी-अपनी डंडी होती है।

खिलाड़ियों में तालमेल बहुत जरूरी होता है, क्योंकि अकेले कोई खिलाड़ी गोथा गोल तक नहीं पहुंचा सकता।


खेलने का तरीका

इस खेल में खिलाड़ियों को कुछ सरल कदम अपनाने होते हैं:

  1. खेल की शुरुआत में गोथा मैदान के बीच में रखा जाता है।

  2. दोनों टीमें अपने-अपने गोल की ओर खड़ी होती हैं।

  3. जैसे ही खेल शुरू होता है, खिलाड़ी दौड़कर गोथे तक पहुंचते हैं।

  4. डंडी से गोथा मारते हुए उसे गोल की ओर ले जाना होता है।

  5. दूसरी टीम के खिलाड़ी गोथे को रोकने की कोशिश करते हैं।

  6. जिस टीम ने पहले गोथा विरोधी गोल में डाल दिया, उसे अंक मिलता है।

खेल में काफी भागदौड़, जोश और समझदारी की जरूरत होती है।


खेल के नियम

हालांकि अलग-अलग गांवों में इसके नियम थोड़े अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ मुख्य नियम इस प्रकार हैं:

  • डंडी से ही गोथे को मारना होता है। हाथ से छूना मना है।

  • अगर गोथा मैदान के बाहर चला जाए तो खेल रुक जाता है और फिर से बीच में रखा जाता है।

  • जानबूझकर विरोधी खिलाड़ी को डंडी से मारना प्रतिबंधित होता है।

  • गोल करने के बाद दूसरी टीम को अगली बारी दी जाती है।

  • एक तय समय या तय अंकों तक खेल खेला जाता है।


जरूरी सामान

डंडी या गोथा खेलने के लिए आपको महंगे उपकरणों की जरूरत नहीं होती।

  1. डंडी (लकड़ी की छड़ी) – लगभग 3 से 4 फीट लंबी।

  2. गोथा (गेंद) – छोटी लकड़ी या रबर की गोल चीज।

  3. मैदान – समतल खुली जगह।

  4. चिन्ह या पत्थर – गोल तय करने के लिए।

यही कुछ चीजें जुटा ली जाएं तो खेल तुरंत शुरू किया जा सकता है।


डंडी या गोथा के फायदे

यह खेल सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक विकास में भी मददगार है।

  • शरीर को मजबूत बनाता है – इसमें दौड़ना, झुकना और तेजी से घूमना पड़ता है, जिससे शरीर स्वस्थ रहता है।

  • फुर्ती और स्फूर्ति बढ़ती है – गोथा पकड़ने और मारने की कोशिश में चपलता बढ़ती है।

  • टीम भावना पैदा होती है – खिलाड़ी मिलजुल कर खेलते हैं और सामूहिक प्रयास करते हैं।

  • मनोरंजन और खुशहाली का साधन – गांव के लोग मिलकर इसका आनंद लेते हैं।

  • धैर्य और एकाग्रता – खेलते समय पूरी एकाग्रता जरूरी होती है, जो बच्चों में धैर्य सिखाती है।


बच्चों में लोकप्रियता

आज मोबाइल और वीडियो गेम के युग में भी डंडी या गोथा की अपनी अलग जगह है। बच्चों को जैसे ही यह खेल सिखाया जाता है, वे तुरंत इससे जुड़ जाते हैं।

गांवों में स्कूल के बाद बच्चे इसका अभ्यास करते हैं। छुट्टियों में यह खेल खास तौर पर आयोजित किया जाता है। यह खेल बच्चों को सक्रिय रखता है और उनमें खेल भावना पैदा करता है।


शहरों में डंडी या गोथा

शहरों में खुले मैदान कम होते जा रहे हैं। इसलिए यह खेल थोड़ा कम प्रचलित है। हालांकि कुछ संस्थाएं और खेल क्लब पुराने देसी खेलों को दोबारा जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं।

शहरों में स्कूल और खेल उत्सवों में कभी-कभी डंडी या गोथा प्रतियोगिताएं रखी जाती हैं। इससे बच्चों को अपनी संस्कृति जानने का मौका मिलता है।


खेल का सामाजिक महत्व

डंडी या गोथा सिर्फ खेल नहीं, बल्कि एक परंपरा है। यह पीढ़ियों से चली आ रही संस्कृति का हिस्सा है। यह खेल गांव के लोगों को एक साथ जोड़ता है।

किसी त्योहार या मेले में अगर यह खेल हो रहा हो, तो बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी जुट जाते हैं। खेलने वाले और देखने वाले, सभी का मन लग जाता है।


खेल को बढ़ावा देने के उपाय

अगर हम चाहते हैं कि यह खेल आने वाले समय में भी जीवित रहे, तो कुछ उपाय करने होंगे:

  • स्कूलों में प्रतियोगिताएं कराई जाएं।

  • गांवों में वार्षिक खेल महोत्सव में इसे शामिल किया जाए।

  • टीवी और सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी दी जाए।

  • शहरों में भी छोटे-छोटे टूर्नामेंट कराए जाएं।


आज के बच्चों के लिए डंडी या गोथा क्यों जरूरी है?

आज बच्चे ज्यादातर समय मोबाइल या टीवी पर बिताते हैं। इससे उनकी सेहत पर असर पड़ता है। डंडी या गोथा जैसे खेल बच्चों को बाहर लाते हैं।

इससे:

  • आंखों को आराम मिलता है।

  • शरीर सक्रिय रहता है।

  • मन खुश रहता है।

  • खेल भावना विकसित होती है।


खेल से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

  1. डंडी या गोथा को कई जगह अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

  2. पुराने समय में गोथा मिट्टी से भी बनाया जाता था।

  3. इसमें हॉकी और फुटबॉल दोनों की झलक मिलती है।

  4. यह खेल किसी भी उम्र का व्यक्ति खेल सकता है।

  5. कई गांवों में यह खेल शादी या मेले के मौके पर खेला जाता है।


निष्कर्ष

डंडी या गोथा हमारे देश की मिट्टी से जुड़ा एक अनमोल खेल है। इसमें सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्की स्वास्थ्य, एकता और परंपरा भी छुपी हुई है। आज भले ही इसका चलन थोड़ा कम हो गया हो, लेकिन अगर हम चाहें तो इसे फिर से लोकप्रिय बना सकते हैं।

जब भी आपको मौका मिले, अपने बच्चों को यह खेल जरूर सिखाइए। उन्हें बताए कि हमारी संस्कृति कितनी रंगीन और मजेदार रही है। डंडी या गोथा जैसा खेल हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है।


FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)

1. डंडी या गोथा किस तरह का खेल है?
यह हॉकी की तरह लकड़ी की डंडी और गोथे से खेला जाने वाला देसी खेल है।

2. इस खेल में कितने खिलाड़ी होते हैं?
दो टीमों में 5 से 7 खिलाड़ी होते हैं।

3. यह खेल किस मैदान में खेला जाता है?
किसी भी समतल खुली जगह या मिट्टी के मैदान में।

4. खेल का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
गोथा को डंडी से मारकर विरोधी टीम के गोल में डालना।

5. क्या यह खेल शारीरिक विकास में मदद करता है?
हाँ, इससे शरीर फुर्तीला और मजबूत होता है।

6. डंडी कैसी होती है?
यह 3 से 4 फीट लंबी लकड़ी की छड़ी होती है।

7. गोठा किस चीज का बना होता है?
छोटी लकड़ी या रबर की गोल गेंद जैसी चीज होती है।

8. क्या शहरों में यह खेला जाता है?
बहुत कम, लेकिन कुछ जगहों पर प्रतियोगिताएं कराई जाती हैं।

9. क्या यह खेल उम्रदराज लोग भी खेल सकते हैं?
हाँ, यह सभी उम्र के लिए सुरक्षित और मजेदार खेल है।

10. इसे दोबारा लोकप्रिय कैसे बनाया जा सकता है?
स्कूलों, खेल क्लबों और मीडिया के माध्यम से जागरूकता फैलाई जा सकती है।

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